सोलहवीं शताब्दी कि बात है । सूरदास जी से प्रभावित हमारी भारतीय सभ्यता में Corporate Culture & Practices का आगमन हुआ । उस ज़माने से ही Employee इसको पूर्ण रूप से follow करना प्रारम्भ कर चुका था । प्रस्तुत पंक्तियों में मैंने ऐसे ही एक Employee के दर्द को capture करने कि च्येष्टा करी है, जो कि Appraisal Meeting में बैठा है:
Employee बैठा है अपने Manager के सामने और अपना appraisal पढ़ना start करता है । उसकी पूरी कोशिश है कि Manager उसके efforts और sincerity को समझे।
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Manager मोरे , Manager मोरे
मैं ही ये Module बनायो
भोर भयो office में आके
भोर भयो office में आके
Often , देर रात को जायो
Manager मोरे , मैं ही ये Module बनायो
चार जगह Requirements लिए भटक्यो
चार जगह Requirements लिए भटक्यो
अकेले ही Design भी बनायो
Manager मोरे , मैं ही ये Module बनायो
Employee देखता है कि काम का लेखा-जोखा दिखाने के बाद भी कोई असर नहीं पड़ा। अब क्या! अंदर का दुःख मानो कलेजे को फाड़ के निकलने कि कोशिश करने लगता है। Finally , गरीब Employee, Manager के emotional side को touch करने के लिए क्या कहता है :
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Manager मोरे , मैं ही ये Module बनायो
Manager मोरे ,
मैं Developer , Pay-Band में छोटो
मैं Developer , Pay-Band में छोटो
फिर भी Lead-Role निभायो
Manager मोरे , मैं ही ये Module बनायो
इस समय Manager कुछ moved लगता है। यही वो समय है जब Employee के अंदर का बच्चा जागृत होकर कुछ ऐसे भावुक सा हो जाता है कि मानो अभी उठ कर गले लग के रो ही देगा :
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Colleagues मोरे सब बैर परे हैं
Colleagues मोरे सब बैर परे हैं
जल-फुंक के Rating गिरायो
रे Manager मोरे , मैं ही ये Module बनायो
और अब मुद्दे कि बात। जिसके लिए वोह पिछले एक घंटे से तरस रहा था। यह शायद ” most important concern ” रही थी :
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बरस बीते, Hike को मुख देखे
बरस बीते, Hike को मुख देखे
कभी Bonus ही दिलवायो
Manager मोरे , मैं ही ये Module बनायो
Manager मोरे , मैं ही ये Module बनायो
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PS. Any resemblance to any Employee/Manager is purely co-incidental. 😛